डॉलर से भारतीय रुपया विनिमय दर का महत्व, भविष्य की संभावनाएं!

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Table of Contents

डॉलर से भारतीय रुपया


वैश्विक अर्थव्यवस्था में मुद्रा विनिमय का महत्व अत्यधिक है, और इसका असर न केवल व्यापार बल्कि राष्ट्रों के वित्तीय स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। भारतीय रुपया और अमेरिकी डॉलर, ये दोनों मुद्राएँ वैश्विक वित्तीय प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। भारतीय रुपया (INR) भारत की आधिकारिक मुद्रा है, जबकि अमेरिकी डॉलर (USD) दुनिया की सबसे प्रमुख और व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली मुद्रा है। इन दोनों मुद्राओं के बीच विनिमय दरों का परिवर्तन न केवल अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश को प्रभावित करता है, बल्कि घरेलू अर्थव्यवस्था में भी गंभीर प्रभाव डालता है।

 

डॉलर से भारतीय रुपया का महत्व! एक गहरी समझ

भारतीय अर्थव्यवस्था की सफलता और स्थिरता में डॉलर से भारतीय रुपया (INR) का विनिमय दर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सिर्फ एक वित्तीय आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह पूरी वैश्विक और घरेलू अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाली एक शक्तिशाली ताकत है। डॉलर (USD) की वैश्विक प्रमुखता और भारतीय रुपया (INR) की स्थानीय स्थिति के बीच के रिश्ते को समझना हमारे व्यापार, निवेश, आयात-निर्यात और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में होने वाले बदलावों को समझने के लिए जरूरी है।

1. आंतर्राष्ट्रीय व्यापार में डॉलर का महत्व

  • भारत जैसे विकासशील देश के लिए, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की महत्वपूर्ण भूमिका है। बहुत से वैश्विक व्यापार डॉलर में होते हैं, चाहे वह पेट्रोलियम उत्पाद हों, मशीनरी, या अन्य वस्त्र। जब डॉलर मजबूत होता है, तो भारत को अपनी आयातित वस्तुओं के लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इसका सीधा असर देश में महंगाई पर पड़ता है, विशेष रूप से ऊर्जा और कच्चे माल की बढ़ी हुई कीमतों के कारण।
  • उदाहरण के लिए, अगर डॉलर का मूल्य बढ़ता है, तो भारत को आयातित तेल और गैस की कीमतों में वृद्धि का सामना करना पड़ता है, क्योंकि इन वस्तुओं का व्यापार अधिकांशतः डॉलर में होता है। इससे घरेलू स्तर पर पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं, जो महंगाई और जीवन स्तर को प्रभावित करती हैं।
  • वहीं, जब भारतीय रुपया मजबूत होता है, तो आयात सस्ते हो सकते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को राहत मिलती है, लेकिन इससे भारतीय निर्यातक नुकसान उठा सकते हैं, क्योंकि उनके उत्पाद वैश्विक बाजार में महंगे हो जाते हैं।

 

2. विदेशी निवेश और डॉलर की भूमिका

  • डॉलर और भारतीय रुपया की विनिमय दर विदेशी निवेशकों के दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है। जब भारतीय रुपया कमजोर होता है, तो विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में निवेश करने के लिए आकर्षित हो सकते हैं, क्योंकि वे अधिक रुपये प्राप्त कर सकते हैं डॉलर के मुकाबले। यह भारतीय शेयर बाजार और अन्य निवेशों के लिए एक सकारात्मक संकेत हो सकता है।
  • इसके विपरीत, जब रुपया मजबूत होता है, तो विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से अपना निवेश निकाल सकते हैं, क्योंकि उन्हें भारतीय निवेशों में कम रिटर्न मिलेगा। इसलिए, विदेशी निवेशकों की रणनीतियां सीधे तौर पर डॉलर और भारतीय रुपया के विनिमय दर पर निर्भर करती हैं।

 

3. महंगाई और जीवन यापन पर असर

  • डॉलर से भारतीय रुपया का विनिमय दर महंगाई और जीवन यापन पर भी गहरा असर डालता है। जैसे-जैसे डॉलर का मूल्य बढ़ता है, आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है, जो घरेलू बाजार में महंगाई को बढ़ाती है। पेट्रोलियम उत्पादों, खाद्य वस्तुओं और अन्य जरूरी सामानों की कीमतों में वृद्धि आम जनता की जीवनशैली को प्रभावित कर सकती है।
  • विशेष रूप से, जब रुपया कमजोर होता है, तो भारतीय उपभोक्ताओं के लिए विदेशों से सामान खरीदना महंगा हो जाता है। उदाहरण के लिए, विदेशी ब्रांड्स की वस्तुएं, जो भारत में बेची जाती हैं, उनकी कीमत बढ़ जाती है, जिससे उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। इसके अलावा, विदेशों में शिक्षा लेने वाले भारतीय छात्रों और चिकित्सा उपचार कराने वालों के लिए भी यह एक चुनौती बन सकता है।

 

4. भारत के विदेशी मुद्रा भंडार और रिजर्व बैंक की भूमिका

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी डॉलर से भारतीय रुपया के विनिमय दर को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब भारतीय रुपया कमजोर हो जाता है, तो रिज़र्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग कर सकता है ताकि रुपये की मूल्यवृद्धि को स्थिर किया जा सके।
  • वहीं, जब रुपये की कीमत बढ़ जाती है, तो रिज़र्व बैंक इसे नियंत्रित करने के लिए बाजार में हस्तक्षेप कर सकता है। इसका उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर रखना है और विदेशी निवेशकों के लिए एक भरोसेमंद वातावरण प्रदान करना है।

 

5. विदेशी कर्ज और डॉलर की अहमियत

  • भारत सरकार और कई निजी क्षेत्र की कंपनियां विदेशी कर्ज लेती हैं, और यह कर्ज अक्सर डॉलर में होता है। जब डॉलर की कीमत बढ़ती है, तो भारतीय कंपनियों और सरकार को अपने कर्ज की अदायगी के लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इससे उनका वित्तीय बोझ बढ़ सकता है, जो उनकी कार्यशील पूंजी और निवेश योजनाओं को प्रभावित कर सकता है।
  • इसके अलावा, भारतीय कंपनियों को जब डॉलर में कर्ज चुकाना होता है, तो उन्हें रुपये की अस्थिरता का भी सामना करना पड़ता है। इस कारण से, कई कंपनियां अपनी वित्तीय रणनीतियों को डॉलर और रुपये की विनिमय दर के हिसाब से तैयार करती हैं।

 

6. डॉलर से भारतीय रुपया का सामाजिक प्रभाव

  • डॉलर से भारतीय रुपया की विनिमय दर का सामाजिक प्रभाव भी महत्वपूर्ण है। जब रुपये की कीमत गिरती है, तो आम जनता को महंगाई का सामना करना पड़ता है। पेट्रोल, गैस, और घरेलू वस्त्रों की कीमतों में वृद्धि होती है, जो व्यक्तिगत बजट पर दबाव डालती है। खासकर, वे परिवार जो आयातित सामान पर निर्भर करते हैं, उनके लिए यह एक कठिन समय होता है।
  • इसका असर शिक्षा पर भी पड़ता है, क्योंकि कई भारतीय छात्र विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए डॉलर में भुगतान करते हैं। जब डॉलर मजबूत होता है, तो उन्हें अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं। इसी तरह, विदेश में इलाज करवा रहे लोगों के लिए भी डॉलर की कीमत में वृद्धि एक चुनौती बन सकती है।

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डॉलर से भारतीय रुपया विनिमय दर का निर्धारण


डॉलर से भारतीय रुपया (INR) विनिमय दर (exchange rate) का निर्धारण एक जटिल और बहुपरकारी प्रक्रिया है। यह दर वैश्विक वित्तीय, व्यापारिक और राजनीतिक कारकों से प्रभावित होती है। विनिमय दर यह निर्धारित करती है कि एक डॉलर की कितनी भारतीय रुपये के बराबर है। यह दर आर्थिक और व्यापारिक गतिविधियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है, क्योंकि यह आयात, निर्यात, विदेशी निवेश, और अन्य वित्तीय लेन-देन को प्रभावित करती है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि डॉलर से भारतीय रुपया विनिमय दर का निर्धारण कैसे होता है।

1. बाजार आधारित विनिमय दर (Market-based Exchange Rate)

विनिमय दर का मुख्य निर्धारण वैश्विक मुद्रा बाजार (foreign exchange market) में होता है। यह दर एक “फ्लोटिंग” प्रणाली के अंतर्गत काम करती है, जिसका मतलब है कि यह बाजार की आपूर्ति और मांग पर आधारित होती है। जब डॉलर की मांग अधिक होती है, तो उसकी कीमत बढ़ जाती है और इसके परिणामस्वरूप भारतीय रुपया कमजोर हो सकता है। इसके विपरीत, जब डॉलर की आपूर्ति अधिक होती है या भारतीय रुपये की मांग बढ़ती है, तो रुपये की कीमत मजबूत हो सकती है।

विनिमय दर में बदलाव के पीछे विभिन्न आर्थिक और राजनीतिक कारक काम करते हैं।

 

2. प्रमुख कारक जो डॉलर से भारतीय रुपया विनिमय दर को प्रभावित करते हैं

2.1. आर्थिक परिस्थितियाँ (Economic Conditions)

  • भारत और अमेरिका की आर्थिक स्थितियाँ विनिमय दर को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जब किसी देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, तो उसकी मुद्रा की कीमत बढ़ने की संभावना होती है। इसके कारण, भारतीय रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले बढ़ सकती है। उदाहरण के लिए, अगर भारतीय अर्थव्यवस्था में उच्च विकास दर और कम महंगाई दर होती है, तो निवेशक भारतीय रुपये को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अधिक पसंद करेंगे, जिससे रुपये की कीमत बढ़ सकती है।

2.2. ब्याज दरों का अंतर (Interest Rate Differential)

  • ब्याज दरें भी विनिमय दर को प्रभावित करती हैं। यदि भारत में ब्याज दरें अमेरिका के मुकाबले अधिक होती हैं, तो विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में निवेश करने के लिए आकर्षित हो सकते हैं। इससे भारतीय रुपये की मांग बढ़ती है, और रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले मजबूत हो सकती है। इसके विपरीत, यदि अमेरिकी ब्याज दरें भारत से अधिक होती हैं, तो निवेशक डॉलर में निवेश करना पसंद करेंगे, जिससे रुपये की कीमत गिर सकती है।

2.3. विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves)

  • भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भारतीय रुपये की स्थिरता पर असर डालता है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग रुपये की विनिमय दर को स्थिर करने के लिए कर सकता है। यदि रुपये की कीमत घट रही होती है और भारतीय रिज़र्व बैंक इसका मुकाबला करना चाहता है, तो वह डॉलर या अन्य विदेशी मुद्राओं का इस्तेमाल करके भारतीय रुपये की खरीददारी कर सकता है, ताकि उसकी कीमत बढ़ाई जा सके। इसके विपरीत, अगर भारतीय रिज़र्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार में कमी देखता है, तो वह विनिमय दर को स्थिर रखने में कठिनाई महसूस कर सकता है।

2.4. वाणिज्यिक घाटा (Trade Deficit)

  • वाणिज्यिक घाटा (trade deficit) भी विनिमय दर को प्रभावित करता है। अगर भारत का वाणिज्यिक घाटा बढ़ता है, तो इसका मतलब है कि भारत अधिक आयात कर रहा है और कम निर्यात कर रहा है। इस स्थिति में, अधिक डॉलर की आवश्यकता होती है, जिससे डॉलर की मांग बढ़ती है और रुपये की कीमत गिर सकती है। इसके विपरीत, यदि भारत का निर्यात अधिक होता है और आयात कम, तो रुपये की मांग बढ़ सकती है, जिससे रुपये की कीमत में वृद्धि हो सकती है।

2.5. वैश्विक आर्थिक घटनाएँ (Global Economic Events)

  • वैश्विक आर्थिक घटनाएँ जैसे कि वित्तीय संकट, युद्ध, प्राकृतिक आपदाएँ, और वैश्विक व्यापार नीतियाँ भी विनिमय दरों को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, COVID-19 महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया, जिससे कई देशों की मुद्राएँ अस्थिर हो गईं। इस प्रकार की घटनाएँ डॉलर की मांग बढ़ा सकती हैं, क्योंकि डॉलर को एक सुरक्षित निवेश के रूप में माना जाता है, और इसके परिणामस्वरूप भारतीय रुपया कमजोर हो सकता है।

2.6. राजनीतिक घटनाएँ (Political Events)

  • राजनीतिक घटनाएँ और सरकार की नीतियाँ भी विनिमय दर को प्रभावित कर सकती हैं। अगर भारत में राजनीतिक अस्थिरता या चुनावी अनिश्चितताएँ होती हैं, तो विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से दूर भाग सकते हैं, जिससे रुपये की कीमत गिर सकती है। इसके विपरीत, यदि भारत में राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक सुधार होते हैं, तो विदेशी निवेशकों का विश्वास बढ़ सकता है, और रुपये की कीमत मजबूत हो सकती है।

2.7. प्राकृतिक आपदाएँ और पर्यावरणीय घटनाएँ (Natural Disasters and Environmental Events)

  • भारत में अक्सर प्राकृतिक आपदाएँ जैसे बाढ़, सूखा, और अन्य पर्यावरणीय संकट होते हैं, जो आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करते हैं। जब प्राकृतिक आपदाएँ होती हैं, तो उत्पादन कम हो सकता है, जिससे आयात पर निर्भरता बढ़ सकती है और रुपये की कीमत कमजोर हो सकती है।

3. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का हस्तक्षेप

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) डॉलर से भारतीय रुपया विनिमय दर को प्रभावित करने के लिए हस्तक्षेप कर सकता है। RBI विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करके रुपये की कीमत को स्थिर रखने की कोशिश करता है। यदि रुपये की कीमत गिर रही होती है, तो RBI डॉलर का भंडार इस्तेमाल करके रुपये की खरीददारी कर सकता है और इसे स्थिर करने की कोशिश कर सकता है।

इसके अलावा, RBI विभिन्न मौद्रिक नीतियाँ भी लागू करता है, जैसे कि ब्याज दरों का निर्धारण, जो विनिमय दरों को प्रभावित कर सकती हैं।

 


डॉलर और भारतीय रुपया के विनिमय दर के प्रमुख प्रभाव


1. आयात-निर्यात पर प्रभाव:

  • डॉलर और भारतीय रुपया के विनिमय दर के परिवर्तन का सबसे सीधा असर आयात और निर्यात व्यापार पर होता है। जब रुपया कमजोर होता है, तो भारत को अपने आयातों के लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इससे आयातित वस्तुओं की कीमत बढ़ जाती है, जिससे उपभोक्ताओं के लिए महंगाई बढ़ सकती है। इसके विपरीत, जब रुपया मजबूत होता है, तो आयात सस्ते हो जाते हैं और विदेशी वस्तुओं की कीमतें कम हो जाती हैं, लेकिन भारतीय निर्यातकों के लिए यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि उनके उत्पादों की कीमत वैश्विक बाजारों में बढ़ जाती है।

2. विदेशी निवेश:

  • भारतीय रुपया और अमेरिकी डॉलर के बीच विनिमय दर विदेशी निवेशकों के लिए एक महत्वपूर्ण संकेतक होती है। यदि रुपये की कीमत घटती है, तो विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय बाजार में निवेश करना अधिक महंगा हो जाता है। इसके विपरीत, जब रुपया मजबूत होता है, तो निवेशक भारतीय बाजार में अधिक आकर्षित हो सकते हैं, क्योंकि उनका निवेश डॉलर के मुकाबले अधिक मूल्यवान हो जाता है।

3. महंगाई पर असर:

  • डॉलर और रुपया के विनिमय दर में बदलाव घरेलू महंगाई दर पर भी असर डालता है। जब डॉलर की कीमत बढ़ती है, तो आयातित वस्तुएं महंगी हो जाती हैं, जिससे उपभोक्ताओं को अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। विशेष रूप से, पेट्रोलियम उत्पादों और अन्य प्रमुख आयातों की कीमतों में वृद्धि महंगाई को बढ़ाती है।

4. विदेशी कर्ज पर प्रभाव:

  • भारत में बहुत से सरकारी और निजी क्षेत्र के संस्थान डॉलर में कर्ज लेते हैं। जब रुपया कमजोर होता है, तो उन्हें अपने कर्ज की अदायगी के लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं, जो उनकी वित्तीय स्थिति को प्रभावित कर सकता है। इस कारण से, भारतीय कंपनियां और सरकार विदेशी मुद्रा में कर्ज लेने से बचने की कोशिश करते हैं, या कम से कम ऐसा कर्ज लेते हैं, जिसका भुगतान रुपयों में किया जा सके।

डॉलर से भारतीय रुपया की विनिमय दर के लिए भविष्यवाणियाँ


भारतीय रुपया और अमेरिकी डॉलर के बीच के विनिमय दर की भविष्यवाणी करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है, क्योंकि यह वैश्विक घटनाओं, वित्तीय संकटों, और राष्ट्रीय नीतियों पर निर्भर करता है। हालांकि, कुछ प्रमुख पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, हम अनुमान लगा सकते हैं कि भविष्य में भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कैसा प्रदर्शन कर सकता है।

1. वैश्विक आर्थिक अस्थिरता:

  • यदि वैश्विक बाजारों में अस्थिरता बनी रहती है, तो अमेरिकी डॉलर मजबूत हो सकता है, क्योंकि इसे सुरक्षित निवेश के रूप में देखा जाता है। इसके विपरीत, यदि वैश्विक परिस्थितियाँ स्थिर होती हैं और भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार होता है, तो रुपये की स्थिति मजबूत हो सकती है।

2. भारत की आर्थिक विकास दर:

  • भारत की आर्थिक वृद्धि भी रुपये की स्थिति पर प्रभाव डालती है। यदि भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन करती है और विकास दर उच्च रहती है, तो रुपये की कीमत में मजबूती आ सकती है।

3. विनिमय दर नीति:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक की विनिमय दर नीति भी रुपये की स्थिरता को प्रभावित करती है। रिज़र्व बैंक द्वारा रुपया स्थिर रखने के लिए किए गए कदम, जैसे विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप, रुपये की स्थिति पर असर डाल सकते हैं।

 


डॉलर से भारतीय रुपया का सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण


डॉलर और भारतीय रुपया के बीच की विनिमय दर न केवल व्यापारिक या वित्तीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन को भी प्रभावित करती है।

1. आयातित वस्तुएं: जब रुपया कमजोर होता है, तो विदेश से आने वाली चीजें महंगी हो जाती हैं, जिससे आम आदमी पर आर्थिक दबाव बढ़ता है। इलेक्ट्रॉनिक्स, मोबाइल फोन, और पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ी हुई कीमतें उपभोक्ताओं के बजट पर असर डालती हैं।

2. शिक्षा और चिकित्सा: कई भारतीय छात्र विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए डॉलर में फीस का भुगतान करते हैं। यदि डॉलर की कीमत बढ़ती है, तो उनकी शिक्षा की लागत भी बढ़ जाती है। इसी प्रकार, विदेश में इलाज कराने वाले मरीजों के लिए भी महंगाई बढ़ सकती है।


 

निष्कर्ष

  • डॉलर और भारतीय रुपया के बीच की विनिमय दर सिर्फ एक वित्तीय आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह वैश्विक और घरेलू आर्थिक स्थिरता, व्यापारिक प्रगति, और सामाजिक समृद्धि का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। इसके परिवर्तन से न केवल व्यापारिक संबंध प्रभावित होते हैं, बल्कि यह आम नागरिक की जीवनशैली पर भी असर डालता है। इसलिए, इन दोनों मुद्राओं के विनिमय दर को समझना और इसका विश्लेषण करना न केवल व्यवसायिक विशेषज्ञों के लिए, बल्कि आम लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है, ताकि वे आर्थिक परिवर्तनों के अनुरूप अपनी योजनाएँ बना सकें।

 

  • डॉलर से भारतीय रुपया का विनिमय दर सिर्फ एक संख्यात्मक आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था, वैश्विक व्यापार और व्यक्तिगत जीवन में कई महत्वपूर्ण बदलावों को प्रभावित करता है। डॉलर और रुपये के बीच के रिश्ते का समझना न केवल व्यापारिक और वित्तीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह रोज़मर्रा के जीवन, निवेश और समाज पर होने वाले असर को भी समझने में मदद करता है।
  • यह विनिमय दर भारतीय रिज़र्व बैंक, विदेशी मुद्रा भंडार, सरकारी नीतियों और वैश्विक आर्थिक घटनाओं से प्रभावित होती है, और इसका सही मूल्यांकन और प्रबंधन भारत की आर्थिक स्थिरता और समृद्धि के लिए आवश्यक है।

 

  • डॉलर से भारतीय रुपया विनिमय दर का निर्धारण एक जटिल और बहुपरकारी प्रक्रिया है, जो वैश्विक और घरेलू कारकों पर आधारित होती है। यह दर वैश्विक व्यापार, विदेशी निवेश, और घरेलू महंगाई को प्रभावित करती है। भारतीय रिज़र्व बैंक का हस्तक्षेप, विदेशी मुद्रा भंडार, व्यापारिक घाटा, और ब्याज दरों का अंतर जैसे कारक विनिमय दर को प्रभावित करते हैं। इन सभी कारकों का मिलाजुला असर भारतीय रुपये की स्थिति पर पड़ता है, और इसके परिणामस्वरूप रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले बढ़ या घट सकती है।

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